Menu
blogid : 23042 postid : 1101634

देश में बेरोजगारी की वजह हैं कामकाजी महिलाएं!

दृष्टिकोण
दृष्टिकोण
  • 2 Posts
  • 1 Comment

जब एक औरत पढ़ती है तो पूरा परिवार शिक्षित होता है, इसलिए महिलाओं और लड़कियों को पढ़ाना जरूरी है, पढ़ेगी बेटी, बढ़ेगी बेटी…इस प्रकार की बातें और स्लोगन हम अक्सर केन्द्र सरकार के माध्यम से हमेशा सुनते रहते हैं, पर क्या सभी राज्यों की यही सोच है? क्या वास्तव में आज महिलाओं का आत्मनिर्भर होना, न केवल उनके परिवार, बल्कि देश के लिए महत्वपूर्ण हो गया है? क्या वास्तव में पुरुष-प्रधान समाज की सोच महिलाओं के प्रति बदली है?…ये कुछ सवाल हैं, जिनपर हाल में आई एक खबर विराम लगा देती है और सोचने पर विवश करती है कि शायद अब भी कुछ नहीं बदला.

दरअसल, छतीसगढ़ राज्य के सरकारी स्कूलों की सामाजिक ज्ञान की पुस्तकों में देश व राज्य की भावी पीढ़ी यानि 10 वीं के छात्रों को यह पढ़ाया जा रहा है कि ‘’कामकाजी महिलाओं की वजह से भी देश में बेरोजगारी बढ़ रही है.‘’ 10वीं के छात्रों को यह ज्ञान आधिकारिक रूप से दिया जा रहा है, यह बात सुनकर ही होश उड़ते हैं.

औरतों की देश और समाज में क्या वास्तविक स्थिति है, इस बात की कलई बलात्कारों और घरेलू हिंसा की वारदातों में बढ़ोतरी से अक्सर खुलती रही है और अब छतीसगढ़ की यह खबर बताती है कि महिलाओं के प्रति दुराभाव फैलाने में सरकार भी पीछे नहीं.

छतीसगढ़ बोर्ड ऑफ सेकंडरी एजुकेशन की ओर से प्रकाशित हिंदी की टेक्स्ट बुक में इस प्रकार के चैप्टर्स को पढ़ाना छात्रों के भीतर प्रतिगामी मानसिकता को विकसित करना है, हालांकि, इस अपमानजनक चैप्टर पर खुद उसी स्कूल की शिक्षिका ने आपत्ति दर्ज कराई है और इसके खिलाफ मुहिम छेड़ी है,परंतु सोचने वाली बात यह है कि हम अपनी भावी पीढ़ी को अपरिपक्कव अवस्था में ही लिंगभेद की शिक्षा दे रहे हैं, हम देश के लड़कों को यह विचारधारा देना चाह रहे हैं कि अगर आपको और इस देश को उन्नति करनी है, तो महिलाओं का पढ़ना बंद होना चाहिए क्योंकि पढ़कर वह आत्मनिर्भर होती हैं और देश में बेरोजगारी बढ़ाती है.


इस प्रकार की घटनाएं न केवल देश की महिलाओं के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है, बल्कि एक स्वस्थ समाज की संरचना में भी बाधा बनती हैं. अगर सरकारी किताबों में ही महिलाओं के साथ लिंगभेद किया जाएगा, तो हम कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि भविष्य में इस देश में कोई भी पुरुष महिलाओं की भागीदारी पर उंगली नहीं उठाएगा, उनकी इज्जत करेगा और उनका दमन नहीं करेगा. टेक्नोलॉजी और लैंगिक बराबरी के इस युग में इस प्रकार की संकुचित और पूर्वाग्रह से लिप्त शिक्षा देकर हम देश का कैसा सृजन करना चाह रहे हैं.


सच तो यह है कि एक शिक्षित और आत्मनिर्भर महिला न केवल बच्चों में उच्च गुणों का समावेश करने में समर्थ होती है, बल्कि अपने घर और बाहर की जिम्मेदारियों को बखूबी निभाकर देश की तरक्की में भागीदार बनती है, ऐसे में किस आधार पर कहा जा सकता है कि उनके कामकाजी होने से बेरोजगारी बढ़ी है.


देश की बढ़ती बेरोजगारी का ठीकरा महिलाओं के सिर फोड़कर राज्य सरकार अपनी संकीर्ण सोच और पुरुष-प्रधान समाज का प्रतिनिधित्व कर रही है और बेरोजगारी की वजह चाहे जो भी हो, लेकिन लिंगभेद और द्धेषपूर्ण विचारधारा को समाज और छात्रों के भीतर जरूर रोपित करने की वजह इस प्रकार की शिक्षा ही है.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh